पत्रकारिता में ऐसा नहीं चल सकता कि एचआर विभाग किसी दूसरे फ्लोर पर बैठकर महज़ सैलरी स्लिप और मेडिकल इंश्योरेंस के कार्ड बांटने जैसे यांत्रिक काम करता रहे।
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इस तरह उन राजनेताओं को सबक सीखने की जरूरत आन पड़ी है कि जो राजनीति केवल जाति कार्ड खेलकर करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं चल सकता, क्योंकि जनता को तो बस अब तरक्की चाहिए।
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जनता को बंदी बनाकर बाँधने की कोशिश हमेशा की जाती रहती है पर अधिक समय तक ऐसा नहीं चल सकता वह तमाम बंधनों को तोड़ उठ खड़ी होती है-मुरदा होकर भी जीती है / बंदी रह कर भी उठती है ।